थाईलैंड यात्रा ( स्थानीय भ्रमण )-भाग 4

आज फुकेट  में तीसरा दिन था । आज का प्रोग्राम भी काफी थका देने होने  वाला था।हमे पहली ही चेतावनी मिल चुकी थी की समय से गाडी पर पहुंचना था।    दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है। इस बार हमने नाश्ते पर धावा  7 बजे ही बोल दिया था । लगा रॉंग नंबर। नमक हीन  भोजन सारा। एक तो पहले ही कम विकल्प शाकाहारियों के लिए ऊपर से बेस्वाद भोजन। आज पता लगा की कहावत एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा का क्या अर्थ होता है ।


हमारा शाही नाश्ता 


 9.30 बजे ड्राइवर आ गया और पहला पड़ाव था The Tiger Kingdom। हम जो  अपने देश में एक कुत्ते को देख कर सहम जाते है आज  शेर के साथ कुछ मिनट बिताने वाले थे मानो उस ने न्योता दिया हो चाय का । शहर से लगभग 20।मिनेट का रास्ता पार कर के हम पहुंचे।  अब फैसला करना था की 3 प्रकार की श्रेणी के शेरो में किंस के पास जाया जाए।3  श्रेणियां थी - शिशु शेर, बालक शेर,युवा शेर, वृद्ध शेर। शेर जितना छोटा, भाव उतना ज़्यादा।  वैसे सच कहूँ , एक यादगार क्षणा के लिए यहां जाना बुरा नही था।









भावनाओं में बह कर हमने एक फोटोग्राफर भी बुक करा दिया जिस की ज़रूरत नहीं थी।  आज कल मोबाइल के युग में फोटोग्राफर का धंधा वैसे ही चौपट है। अब हमारी बारी थी उस पिंजरे में जाने की जहां शेर अर्ध चेतन अवस्था में थे  क्योंकि इतना दुःसाहस कोई मनुष्य नहीं कर सकता किसी शेर  के सामने। मेरे तो  प्राण मुँह क आ गए जब शेर को हाथ लगाने को कहा।गाइड ने बताया की इस शेर की उम्र लगभग २ वर्ष की है और यह व्यस्क की श्रेणी में आता है।

एक गलती और हमने कर दी की हमने बच्चों के लिए तो छोटे शेर का चुनाव किया और अपने लिए बड़ा।  शायद पैसे बचाने का ख्याल आ गया था।  परन्तु छोटे शेर का चुनाव ही उपयुक्त था क्योंकि वो चुलबुला था जब की बड़े शेर अपेक्षाकृत बिलकुल मरियल से थे बस देखने में ही डरावने थे. हमारे साथ कैमरामैन  भी  था उन यादगार पलो  को कैद करने के लिए।




  लगभग १ घंटा यहाँ बिताने के बाद अब हमने आगे बढ़ना था।  अगला नज़ारा था करोन  और  काटा beach  का viewpoint ऊंचाई से।  बिलकुल OM  की आकृति का था यह दृश्य।  इस वक्त दोपहर की १२ बाज चुके थे और सूर्य देव ९० डिग्री के कोण से अग्नि बाण चला रहे थे जिन्हे झेलना हमारे लिए मुश्किल था।  ज़्यादा देर नहीं रुके और हम आगे की और कूच कर गए


अगला पड़ाव थे ATV  का।  यह ४ पहिये वाली गाडी को चलाने का रोमांच था।  उस जगह हम पहुंचे और रेट देख कर दंग रह गए।  यह एक पर्यटक को फंसाने का जाल था।  हमने तो तौबा कर ली।  केवल बच्चों को इज़ाज़त दे दी।  लगभग १ घंटा यहां व्यर्थ ही था।  गर्मी थमने का नाम नहीं ले रही थी।  यहां से हम पहुंचे बड़े बुद्ध  महाराज जी के पास जिसे Big  Budhaa  कहा जाता है , यहाँ की स्थानीय भाषा में।  अब हम फुकेत के दक्षिण हिस्से में थे।  गाइड ने बताया की इस की ऊंचाई ४५ मीटर है ,२००२ में इसका निर्माण शुरू हुआ था।  आज भी निर्माण जारी है क्योंकि यह लोगो द्वारा चढ़ावे द्वारा निर्माणधीन खर्चे को पूरा किया जाता है।  आप भी ५०० भात दे कर अपने नाम की शिला भेंट कर सकते है।



 चिलचिलाती गर्मी हमारे अंदर हिम्मत नहीं थी और ऊपर सीढ़ियां चढ़ने की।  हमने दूर से ही प्रणाम किया और टूट  पड़े आइसक्रीम की दूकान पर। यहाँ ख़ास बात ध्यान रखने की होती है  की हर आइसक्रीम शुद्ध शाकाहारी हो यह ज़रूरी नहीं है। इस लिए पूछ लेना ठीक रहेगा।  मैंने कोई जोखिम लेना ठीक नहीं समझा इस लिए बर्फ वाली आइसक्रीम ही ली जो की देखने में ही सुन्दर थे वैसे स्वाद में कुछ ख़ास नहीं


टूर में मंदिर न हो ऐसा हो ही नहीं सकता।  वैसे भी वास्तु कला और इतिहास  तथा संस्कृति की दृष्टि से एक पर्यटक के सूची में स्थानीय मंदिर गमन ज़रूरी है।  अगला पड़ाव था Wat Chalong  मंदिर।  १९वी सदी का मंदिर दो भिक्षुओं को  समर्पित है।  आज भी यह मंदिर अपनी आध्यात्मिक शक्तियों के लिए जाना जाता है

Wat Chalong  का भव्य मंदिर 



प्रांगण में स्थित मंदिर जिस में गौतम बुद्ध  की हड्डी के अवशेष आज  है 





स्थानीय लोग मन्नती मांगते हुए 



मन्नते पूरी होने पर इस जगह पटाखे फोड़ कर ईश्वर को धन्यवाद दिया जाता है 


अब  बारी थी एक स्थानीय काजू की फैक्ट्री देखने की।  कमिशन पाने की चाह में टूर ऑपरेटर अवश्य एक न एक दूकान पर ले जाते है जिस से की विदेशी पर्यटक आसानी से हलाल हो।  हम सतर्क थे की खरीदना तो एक पैसा का भी नहीं है सामान।  हाँ अपनी ख़ुशी से वो हमे वहां ले जा रहा है तो हेम कोई ऐतराज़ भी नहीं है। उस काजू की फैक्ट्री में हमने  काजू के पेड़ से काजू  तक की यात्रा होती  देखि है। 
अपने काम से काम रखने वाली एक दक्ष कर्मचारी 

अब तक थकान ज़ोरो पर थी।  ड्राइवर ने भी पूरा प्रपंच किया की हम ट्रिप को यही समाप्त कर के होटल चल पड़े परन्तु धुन के हम पक्के थे।  हमने  पुराना फुकेट  शहर को एक बार देखना था जिस से की मन में कोई कसक न रह जाए।  दिल पर पथ्थर  रख कर गाइड मान गया।  जैसे ही हमने पुराने शहर में प्रवेश किया हम हैरान रह गयी उसकी सुंदरता को देख कर।  पूरे यूरोपियन शैली में बना।  गली के दोनों ओर  हर दूकान और ईमारत के आगे   देश के ध्वजा सुंदरता को चार चाँद लगा रही थी।  ऐसा लग रहा था मानो हम पुर्तगाल में पहुँच गए हो। 

पुराने फुकेट  की शानदार दीवारे 

 आज के दिन का कार्यकर्म यही तक था।  इस केबाद हमे होटल छोड़ दिया गया 

Comments