थाईलैंड यात्रा (फी फी आइलैंड )-भाग- ३

हमारी यात्रा का दूसरा दिन फी फी द्वीप के लिए आरक्षित था।  यह टूर हमने sunleisureworld से बुक करा था।  नियमानुसार एक वैन हम ७ लोगो को लेनी आ गयी थी ठीक कहे अनुसार ८ बजे । हमने इसे हलके में लिया और वही हुआ जिस  की हमने कल्पना भी नहीं की थी।  ड्राइवर ने तांडव कर दिया क्योंकि हम देर से निकले अपने होटल से।  नाश्ता तो बस निगला।  लगभग  आधा घंटे की यात्रा के बाद हमे बंदरगाह पर उतार दिया गया जहां हमारा जहाज इंतज़ार कर रहा था। .खराब मौसम की भविष्वाणी पहले ही हो चुकी थी।  मौसम ज़्याद खराब होने पर यात्रा स्थगित भी हो सकती थी।


 पर्यटकों से खचाखच भरा बंदरगाह 



शानदार गोल्ड क्लास केबिन जहाँ की सीट हमारे लिए आरक्षित थी



बिगड़ते मौसम को हमारी प्रार्थनाओ ने सम्भाला हुआ था 

प्रकृति ने भी पूरा सहयोग दिया जब मौसम सुहावना हो गया 

लगभग २ घंटे का सफर कैसे कटा , पता ही  नहीं चला। रास्ते के कई पत्थर की शिलाये समुद्र में तैरती प्रतीत हो रही थी  और मनोरम दृश्य प्रस्तुत कर रही थी।  शीतल पाय और अल्पाहार की व्यवस्था जहाज पर थी। २ घंटे बाद फी फी द्वीप सामने था परन्तु  हमे बड़े जहाज से छोटी नौकाओं में बैठना था तट तक पहुँचने क लिए 

छोटी नौका में स्थानांतरित होते पर्यटक




पानी का रंग तो देखो !!! हमारे पीने के पानी से ज़्यादा साफ़ है 




भारतीय समय की कितने पाबंद होते है यह सारी  दुनिया जानती है।  तट  पर पहुँचती है यह तख्ती सभी को दिखा दी गयी। बाकी सब तो ठीक है पर १२.३० बजे भोजन कुछ समझ नहीं आया।  खैर छोड़ो ! अभी तो वक्त था इस द्वीप की सुंदरता को अनुभव में कैद करने का  


भई  , साहसिक खेल में भाग लेने के लिए भी साहस तो चाहिए ही होता है चाहे तैरना न आये।  इसी बात का ध्यान रखते हुए हमने स्नॉर्केलिंग (snorkeling ) से पहले ही दूरी बना ली।  यह तो अंग्रेज़ो के चोंचले है हमारे बस  की बात नहीं थी।  कुछ दबंग भारतीय इस जोखिम वाली क्रीड़ा के लिए तैयार थे।  इस क्रीड़ा की कीमत टिकट में सम्मिलित थी
विजयी भव  मेरे लाल -
एक भारतीय जो अंग्रेज़ो के साथ बीच समुद्र में स्नॉर्केलिंग के लिए जा रहा था



हमारे गाइड ने बताया की की यह ६ द्वीपों का समूह है जिस में से फी फी डॉन और फी फी लेह मुख्य है।  यदि हम स्पीड बोट से आते तो हम द्वीप के दुसरे भाग में रुकते।  इस वक्त मौसम साफ़ हो चूका था और सिर  के ठीक ऊपर सूर्य देव अपनी कृपा जम कर बरसा रहे थे। अगला १ घंटा हमने बीच पर ही बिताया।  यहां चश्मे और सनस्क्रीन क्रीम के बिना मुसीबत में पड़ने वाली बात है क्योंकि सूर्य की सीढ़ी किरणे  झुलसा देनी के लिए काफी थी 
मैं और   सिद्धार्थ  ..जी हां पूरी यात्रा का सूत्रधार सिद्धार्थ ही था


ठीक १२.३० बजे भोजन का बिगुल बज चुका था. अंदेशा था हमे की खाने लायक कोई भी चीज़ नहीं होगी। अंग्रेजी की कहावत याद आ गयी "water water everywhere not a drop to drink" .त्राहिमाम त्राहिमाम  हो गया।  यहां पर काम  आये श्री श्री १००८ हल्दीराम नमकीन वाले।  हम भोजन के पैकेट भारत से लाये थे इसी दिन को देखने हेतु।  विदेश में तो कहावत है की " हारे का सहारा , हल्दीराम हमारा "


व्यक्ति ज़हर से शायद न मरे परन्तु इस को खाने के बाद देह त्याग दे। 

मूंगफली रूपी संजीवनी बूटी 


प्राण रक्षक हल्दीराम का रेडी मेड भोजन

लगभग १.३० बजे वापसी का समय हो चुका था।  सभी  यात्री बोट पर बैठ गए।  बड़े ही भारी मन से इस द्वीप को अलविदा कहा।  अगला पड़ाव Maya Bay था।  


इतना पारदर्शी पानी अपने जीवन में  मैंने कभी नहीं देखा 


माया बीच 

रास्ते में माया बीच को दूर से दिखाया गया क्योंकि सरकार ने पर्यावरण की  दृष्टि से वहाँ बोट का रुकना प्रतिबंधित कर दिया है।  पर उस तट  बार जाँबाज़ अँगरेज़ डोंगी चालन और गोताखोरी का आनंद ले रहे थे। बस अगले २ घंटे के बाद हम वापस लौट आये और शानदार सफर का शानदार अंत हुआ 


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